मेरी चालू बीवी-52
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शाम को फोन चेक किया तो तीन मिसकॉल सलोनी की थीं… मैंने सलोनी को कॉल बैक किया…
सलोनी- अरे कहाँ थे आप… मैं कितना कॉल कर रही थी आपको… मैं- क्या हुआ? सलोनी- सुनो… मेरी जॉब लग गई है.. वो जो स्कूल है न उसमें… मैं- चलो, मैं घर आकर बात करता हूँ… सलोनी- ठीक है… हम भी बस
पहुँचने ही वाले हैं… मैं- अरे, अभ तक कहाँ हो? सलोनी- अरे वो वहाँ साड़ी में जाना होगा ना… तो वही शॉपिंग
और फिर टेलर के यहाँ टाइम लग गया.. मैं- ओह… चलो तुम घर पहुँचो… मुझे
भी एक डेढ़ घण्टा लग जाएगा…सलोनी- ठीक है कॉल कर देना जब आओ तो…
मैं- ओके डार्लिंग… बाय..सलोनी- बाय जानू… मैं अब यह सोचने लगा कि यार यह सलोनी, मेरी चालू बीवी शाम के छः बजे तक बाजार में कर क्या रही थी? और टेलर से क्या सिलवाने गई थी?
है कौन यह टेलर? पहले मैं घर जाने कि सोच रहा था… पर इतनी जल्दी घर पहुँचकर करता भी क्या?
अभी तो सलोनी भी घर नहीं पहुँची होगी…मैं अपनी कॉलोनी से मात्र दस मिनट की दूरी पर ही था, सोच
रहा था कि फ्लैट की दूसरी चाबी होती तो चुपचाप फ्लैट में जाकर छुप जाता और देखता वापस आने के बाद
सलोनी क्या क्या करती है। पर चाबी मेरे पास नहीं थी… अब आगे से यह भी ध्यान रखूँगा… तभी मधु का ध्यान आया… उसका घर पास ही तो था… एक बार मैं गया था सलोनी के साथ… सोचा, चलो उसके घर वालों से मिलकर बता देता हूँ और उन लोगों को कुछ पैसे भी दे देता हूँ… अब तो मधु को हमेशा अपने पास
रखने का दिल कर रहा था… गाड़ी को गली के बाहर ही खड़ा करके किसी तरह उस गंदी सी गली को पार करके मैं एक पुराने से छोटे से घर में घर के सामने रुका… उसका दरवाजा ही टूटफूट के टट्टों और टीन से जोड़कर
बनाया था… मैंने हल्के से दरवाजे को खटखटाया… दरवाजा खुलते ही मैं चौंक गया… खोलने वाली मधु थी… उसने अपना कल वाला फ्रॉक पहना था… मुझे देखते ही खुश हो गई… मधु- अरे भैया आप? मैं- अरे तू यहाँ… मैं तो समझ रहा था कि तू अपनी भाभी के साथ होगी… मधु- अरे हाँ.. मैं कुछ देर पहले ही तो आई हूँ… वो भाभी ने बोला कि अब शाम हो गई है तू अब घर जा.. और कल सुबह जल्दी बुलाया है… मैं मधु के घर के अंदर गया, मुझे कोई नजर नहीं आया… मैं- अरे कहाँ है तेरे माँ, पापा? मधु- पता नहीं… सब बाहर ही गए हैं… मैंने ही आकर दरवाजा खोला है… बस उसको अकेला जानते ही मेरा लण्ड फिर से खड़ा हो गया… मैंने वहीं पड़ी एक टूटी सी चारपाई पर बैठते हुए मधु को अपनी गोद में खींच लिया। मधु दूर होते हुए- ओह.. यहाँ कुछ
नहीं भैया… कोई भी अंदर देख सकता है.. और सब आने वाले ही होंगे… मैं कल आऊँगी ना.. तब
कर लेना… वाह रे मधु… वो कुछ मना नहीं कर रही थी… उसको तो बस किसी के देख लेने का डर था..
क्योंकि अभी वो अपने घर पर थी तो… कितनी जल्दी यह लड़की तैयार हो गई थी… जो सब कुछ खुलकर
बोल रही थी.. मैं मधु और रोज़ी की तुलना करने लगा… यह जिसने ज्यादा कुछ नहीं किया.. कितनी जल्दी सब
कुछ करने का सहयोग कर रही थी… और उधर वो अनुभवी.. सब कुछ कर चुकी रोज़ी.. कितने नखरे
दिखा रही थी… शायद भूखा इंसान हमेशा खाने के लिए तैयार रहता है.. यही बात थी.. या मधु की गरीबी ने
उसको ऐसा बना दिया था? मैंने मधु के मासूम चूतड़ों पर हाथ रख उस अपने पास किया और पूछा- अरे
मेरी गुड़िया.. मैं ऐसा कुछ नहीं कर रहा… यह तो बता सलोनी खुद कहाँ है? मधु- वो तो अब्दुल अंकल के
यहाँ होंगी… वो उन्होंने तीन साड़ियाँ ली हैं ना.. तो उसके ब्लाउज और पेटीकोट सिलने देने
थे… मैं- अरे कुछ देर पहले फोन आया था कि वो तो उसने दे दिए थे… मधु- नहीं, वो बाजार वाले दर्जी ने
मना कर दिया था.. वो बहुत दिनों बाद सिल कर देने को कह रहा था..तो भाभी ने उसको नहीं दिए… और फिर मुझको छोड़कर अब्दुल अंकल के यहाँ चली गई… मैं सोचने लगा कि ‘अरे वो अब्दुल…
वो तो बहुत कमीना है…’ और सलोनी ने ही उससे कपड़े सिलाने को खुद ही मना किया था…
तभी… मधु के चूतड़ों पर फ्रॉक के ऊपर से ही हाथ रखने पर मुझे उसकी कच्छी का एहसास हुआ…
मैंने तुरंत अचानक ही उसके फ्रॉक को अपने दोनों हाथ से ऊपर कर दिया… उसकी पतली पतली जाँघों में हरे
रंग की बहुत सुन्दर कच्छी फंसी हुई थी… मधु जरा सा कसमसाई… उसने तुरंत दरवाजे की ओर देखा… और मैं उसकी कच्छी और कच्छी से उभरे हुए उसके चूत वाले हिस्से को देख रहा था… उसके चूत वाली जगह पर
ही मिक्की माउस बना था.. मैंने कच्छी के बहाने उसकी चूत को सहलाते हुए कहा- यह तो बहुत सुन्दर है यार..
अब वो खुश हो गई- हाँ भैया.. भाभी ने दो दिलाई.. और वो मुझसे छूटकर तुरंत दूसरी कच्छी लेकर आई..
वो भी वैसी ही थी पर लाल सुर्ख रंग की.. मैं- अरे वाह.. चल इसे भी पहन कर दिखा… मधु- नहीं अभी नहीं… कल.. मैं भी अभी जल्दी में ही था… और कोई भी आ सकता था… फिर मैंने सोचा कि क्या अब्दुल के
पास जाकर देखूँ, वो क्या कर रहा होगा?? पर दिमाग ने मना कर दिया… मैं नहीं चाहता था कि सलोनी को
शक हो कि मैं उसका पीछा कर रहा हूँ… फिर मधु को वहीं छोड़ मैं अपने फ्लैट की ओर ही चल दिया… सोचा अगर सलोनी नहीं आई होगी तो कुछ देर नलिनी भाभी के यहाँ ही बैठ जाऊँगा.. और अच्छा ही हुआ जो मैं वहाँ से निकल आया… बाहर निकलते ही मुझे मधु की माँ दिख गई.. अच्छा हुआ उसने मुझे नहीं देखा… मैं चुपचाप वहाँ से निकल गाड़ी लेकर अपने घर पहुँच गया। मैं आराम से ही टहलता हुआ अरविन्द अंकल के फ्लैट के सामने से गुजरा… दरवाजा हल्का सा भिड़ा हुआ था बस… और अंदर से आवाजें आ रही थीं… मैं दरवाजे के पास कान लगाकर सुनने लगा कि कहीं सलोनी यहीं तो नहीं है…? नलिनी भाभी- अरे, अब कहाँ जा रहे हो.. कल सुबह ही बता देना ना… अंकल- तू भी न.. जब बो बोल रही है तो.. उसको बताने में क्या हर्ज है.. उसकी जॉब लगी है.. उसके लिए कितनी ख़ुशी का दिन है… नलिनी भाभी- अच्छा ठीक है… जल्दी जाओ और हाँ वैसे
साड़ी बांधना मत सिखाना जैसे मेरे बांधते थे.. अंकल- हे हे… तू भी ना.. तुझे भी तो नहीं आती थी साड़ी
बांधना… तुझे याद है अभी तक कैसे मैं ही बांधता था..? नलिनी भाभी- हाँ हाँ.. मुझे याद है कि कैसे बांधते थे.. पर वैसे सलोनी की मत बाँधने लग जाना.. अंकल- और अगर उसने खुद कहा तो… नलिनी- हाँ वो तुम्हारी तरह
नहीं है… तुम ही उस बिचारी को बहकाओगे.. अंकल- अरे नहीं मेरी जान.. बहुत प्यारी बच्ची है.. मैं तो बस
उसकी हेल्प करता हूँ.. नलिनी- अच्छा अब जल्दी से जाओ और तुरंत वापस आना…
मैं भी तुरंत वहाँ से हट कर एक कोने में को सरक गया, वहाँ कुछ अँधेरा था… इसका मतलब अरविन्द जी मेरे घर ही जा रहे हैं.. सलोनी यहाँ पहुँच चुकी है और अंकल उसको साड़ी पहनना सिखाएंगे… वाह.. मुझे याद है कि सलोनी ने शादी के बाद बस 5-6 बार ही साड़ी पहनी है… वो भी तब, जब कोई पारिवारिक उत्सव हो तभी…
और उस समय भी उसको कोई ना कोई हेल्प ही करता था… मेरे घर की महिलायें ना कि पुरुष… पर अब तो अंकल उसको साड़ी पहनाने में हेल्प करने वाले थे… मैं सोचकर ही रोमांच का अनुभव करने लगा था…
कि अंकल.. सलोनी को कैसे साड़ी पहनाएंगे… पहले तो मैंने सोचा कि चलो जब तक अंकल नहीं आते..
नलिनी भाभी से ही थोड़ा मजे ले लिए जाएँ.. पर मेरा मन सलोनी और अंकल को देखने का कर रहा था…
रसोई की ओर गया… खिड़की तो खुली थी… पर उस पर चढ़कर जाना संभव नहीं था… इसका भी कुछ जुगाड़
करना पड़ेगा… फिर अपने मुख्य गेट की ओर आया और दिल बाग़ बाग़ हो गया… सलोनी ने अंकल को बुलाकर गेट लॉक नहीं किया था… क्या किस्मत थी यार…?? और मैं बहुत हल्के से दरवाजा खोलकर अंदर झांकने लगा… और मेरी बांछें खिल गई… अंदर… इस कमरे में कोई नहीं था… शायद दोनों बैडरूम में ही चले गए थे… बस मैंने चुपके से अंदर घुस दरवाजा फिर से वैसे ही भिड़ा दिया और चुपके चुपके बैडरूम की ओर बढ़ा…मन में एक उत्सुकता लिए कि जाने क्या देखने को मिले…????
कहानी जारी रहेगी।
शाम को फोन चेक किया तो तीन मिसकॉल सलोनी की थीं… मैंने सलोनी को कॉल बैक किया…
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और फिर टेलर के यहाँ टाइम लग गया.. मैं- ओह… चलो तुम घर पहुँचो… मुझे
भी एक डेढ़ घण्टा लग जाएगा…सलोनी- ठीक है कॉल कर देना जब आओ तो…
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है कौन यह टेलर? पहले मैं घर जाने कि सोच रहा था… पर इतनी जल्दी घर पहुँचकर करता भी क्या?
अभी तो सलोनी भी घर नहीं पहुँची होगी…मैं अपनी कॉलोनी से मात्र दस मिनट की दूरी पर ही था, सोच
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कर लेना… वाह रे मधु… वो कुछ मना नहीं कर रही थी… उसको तो बस किसी के देख लेने का डर था..
क्योंकि अभी वो अपने घर पर थी तो… कितनी जल्दी यह लड़की तैयार हो गई थी… जो सब कुछ खुलकर
बोल रही थी.. मैं मधु और रोज़ी की तुलना करने लगा… यह जिसने ज्यादा कुछ नहीं किया.. कितनी जल्दी सब
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उसको ऐसा बना दिया था? मैंने मधु के मासूम चूतड़ों पर हाथ रख उस अपने पास किया और पूछा- अरे
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यहाँ होंगी… वो उन्होंने तीन साड़ियाँ ली हैं ना.. तो उसके ब्लाउज और पेटीकोट सिलने देने
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मना कर दिया था.. वो बहुत दिनों बाद सिल कर देने को कह रहा था..तो भाभी ने उसको नहीं दिए… और फिर मुझको छोड़कर अब्दुल अंकल के यहाँ चली गई… मैं सोचने लगा कि ‘अरे वो अब्दुल…
वो तो बहुत कमीना है…’ और सलोनी ने ही उससे कपड़े सिलाने को खुद ही मना किया था…
तभी… मधु के चूतड़ों पर फ्रॉक के ऊपर से ही हाथ रखने पर मुझे उसकी कच्छी का एहसास हुआ…
मैंने तुरंत अचानक ही उसके फ्रॉक को अपने दोनों हाथ से ऊपर कर दिया… उसकी पतली पतली जाँघों में हरे
रंग की बहुत सुन्दर कच्छी फंसी हुई थी… मधु जरा सा कसमसाई… उसने तुरंत दरवाजे की ओर देखा… और मैं उसकी कच्छी और कच्छी से उभरे हुए उसके चूत वाले हिस्से को देख रहा था… उसके चूत वाली जगह पर
ही मिक्की माउस बना था.. मैंने कच्छी के बहाने उसकी चूत को सहलाते हुए कहा- यह तो बहुत सुन्दर है यार..
अब वो खुश हो गई- हाँ भैया.. भाभी ने दो दिलाई.. और वो मुझसे छूटकर तुरंत दूसरी कच्छी लेकर आई..
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पास जाकर देखूँ, वो क्या कर रहा होगा?? पर दिमाग ने मना कर दिया… मैं नहीं चाहता था कि सलोनी को
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साड़ी बांधना मत सिखाना जैसे मेरे बांधते थे.. अंकल- हे हे… तू भी ना.. तुझे भी तो नहीं आती थी साड़ी
बांधना… तुझे याद है अभी तक कैसे मैं ही बांधता था..? नलिनी भाभी- हाँ हाँ.. मुझे याद है कि कैसे बांधते थे.. पर वैसे सलोनी की मत बाँधने लग जाना.. अंकल- और अगर उसने खुद कहा तो… नलिनी- हाँ वो तुम्हारी तरह
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उसकी हेल्प करता हूँ.. नलिनी- अच्छा अब जल्दी से जाओ और तुरंत वापस आना…
मैं भी तुरंत वहाँ से हट कर एक कोने में को सरक गया, वहाँ कुछ अँधेरा था… इसका मतलब अरविन्द जी मेरे घर ही जा रहे हैं.. सलोनी यहाँ पहुँच चुकी है और अंकल उसको साड़ी पहनना सिखाएंगे… वाह.. मुझे याद है कि सलोनी ने शादी के बाद बस 5-6 बार ही साड़ी पहनी है… वो भी तब, जब कोई पारिवारिक उत्सव हो तभी…
और उस समय भी उसको कोई ना कोई हेल्प ही करता था… मेरे घर की महिलायें ना कि पुरुष… पर अब तो अंकल उसको साड़ी पहनाने में हेल्प करने वाले थे… मैं सोचकर ही रोमांच का अनुभव करने लगा था…
कि अंकल.. सलोनी को कैसे साड़ी पहनाएंगे… पहले तो मैंने सोचा कि चलो जब तक अंकल नहीं आते..
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